बक्शीश - Family Story In Hindi - Storykunj
यह एक बेहद गरीब बच्ची की स्टोरी है। जो अपनी मां के साथ घरों में झाड़ू - पोछा करने का काम करती है। सुंदर खिलौनों से खेलना उसके लिए एक सुंदर सपने की ही तरह है। गरीबी की मजबूरी में अपनी मां के साथ काम करने के लिए आने वाली बच्ची का खिलौनों के प्रति लगाव पर आधारित यह स्टोरी बक्शीश।
आराध्या (रिंकी से):-" रिंकी ! इधर आ । मैं तुझे अपने खिलौने दिखाती हूं ।"
रिंकी पोछा लगाते हुए, एक पल के लिए पीछे पलटी, लेकिन पूर्ववत अपने काम में लग गई, जैसे उसने कुछ सुना ही ना हो ।
शायद उसे पिछली घटना का स्मरण हो आया था, जब बड़ी मालकिन ने उसे सिर्फ इसलिए पीट दिया था कि उसके हाथ में चॉकलेट का कवर था, जो गलती से आराध्या का था | यह तो बाद में आराध्या ने आकर बताया कि उसने ही यह खाली कवर रिंकी को दिया था ।
इस घटना के बाद रिंकी की मां ने रिंकी को हिदायत देते हुए कहा:- " अब उसके पास भूल कर भी मत जाना, नहीं तो फिर मार पड़ेगी | और फिर प्यार जताते हुए कहा देखो तो कैसे मारा है मेरी फूल सी बच्ची को, आने दो मालिक को,
देखना मैं खुद मालकिन की शिकायत करूंगी ।
लेकिन रिंकी की मां तो यह जानती थी कि वह यह बात सिर्फ अपनी बच्ची से दिखावा कह रही है । असल में तो वह अपना मुंह भी मालिक के सामने नहीं खोल सकती । दरअसल ना सिर्फ उसका परिवार बल्कि पूरा गांव ही बड़े मालिक का बंधुआ है। और उस गांव के निवासी और उनके पूर्वज दशकों से ठाकुर की गुलामी करते आ रहे हैं । मालिक की भी एक छोटी पोती है आराध्या। वह भी रिंकी के साथ खेलना चाहती है। बच्चे तो बच्चे होते हैं वह क्या जाने गुलामी को।
आराध्या एक बार फिर से रिंकी को आवाज लगाती है :- " रिंकी आ । यह देख मेरी नई गुड़िया पापा ने मेरे इस बर्थडे पर दी थी ।"
मासूम रिंकी खुद को बहुत रोकने की कोशिश करती है । लेकिन काफी जद्दोजहद के बाद वह डरते - डरते कदमों से आराध्या के पास चली गई । शायद यह किसी छोटी बच्ची के लिए एक अग्निपरीक्षा से कम नहीं था ।
और जब उसने खिलौना देखा तो देखती ही रह गई । इससे पहले उसने कभी ऐसा खिलौना नहीं देखा था, यह उसके लिए एक सुंदर स्वप्न के जैसा ही था । कुछ देर तक एकटक देखने के बाद, उसका मन हुआ कि वह एक बार उसे अपने हाथों से छूकर देखें । लेकिन वह चाह कर भी खिलौने छूने की हिम्मत ना कर सकी । अब आराध्या ने उसे एक - एक करके अपने सारे खिलौने दिखाएं जैसे गुड्डा - गुड़िया, हाथी - घोड़े, गाड़ी और भी ना जाने क्या-क्या ।
रिंकी ललचाए नजरों से बस खिलौने देखे जा रही थी। और वह खिलौने देखने में इतनी मग्न हो गई कि उसे आसपास का कुछ ध्यान ना रहा, लेकिन कुछ क्षण बाद जब वह वापस चेतना में आई तो देखा उसकी मां ममता भरी निगाह से उसे ही देख रही थी । जैसे ही दोनों की नजरें आपस में मिली तो मां हड़बडाते हुए बोली- "चल बिटिया जल्दी से काम खत्म कर ले अगर मालकिन ने देख लिया तो बहुत गुस्सा होंगी ।"
फिर रिंकी बेमन से उठी और जल्दी-जल्दी काम समेटने लगी।
इस तरह रिंकी सुबह अपनी मां के साथ आती थी और शाम को घर चली जाती थी धीरे-धीरे लगभग छ: - सात महीने इसी तरह बीत गए।
अब आराध्या का दाखिला शहर के किसी बड़े स्कूल में हो गया था । और वह हॉस्टल में रहकर पढ़ाई करने लगी थी । छुट्टियों में कभी-कभी ही घर आती थी । इस वजह से अब रिंकी उदास रहने लगी थी। उसका काम में भी मन नहीं लगता था। अब आए दिन उसे मालकिन से डांट सुननी पड़ती थी ।
आज जब काम खत्म करके रिंकी घर जाने के लिए निकली ही थी कि किसी ने उसे पुकारा, बड़ी मालकिन ने आज उसे उसके नाम से पुकारा, उसे तो खुद पर विश्वास ही नहीं हो रहा था कि तभी दूसरी आवाज गूंजी- "रिंकी"
रिंकी-" ज्ज्जज......... जी बड़ी मालकिन और बिना देर किए रिंकी उनके पास पहुंची तो मालकिन ने कर्कश आवाज में पूछा" कहां रह गई थी तू , यह अरु के खिलौने हैं, अब अरु तो यहां है नहीं, इसलिए इन्हें तु ले ले ।
इतने सारे खिलौने देखकर तो वह फूली नहीं समाई । लेकिन तभी बड़ी मालकिन ने खिलौनों के ढेर से एक गुड़िया निकाली इस गुड़िया का एक हाथ टूट चुका था, कपड़े फट चुके थे, और जो बचे भी थे, तो एकदम गंदे हो चुके थे ।
रिंकी ने उसे ध्यान से देखा तो यह वही गुड़िया थी। जो एक बार आराध्या ने दिखाई थी ।
रिंकी का मन तो उस गुड़िया को सिर्फ एक बार हाथ से छू लेने को लालायित था, लेकिन आज क्या हुआ? उसका गुड़िया के प्रति जो दीवानगी थी वह पूरी तरह खत्म हो चुकी थी । उसने गुड़िया लेने में अनिच्छा प्रकट की लेकिन तभी उसकी मां ने कहा "ले ले बेटा ! बड़ी मालकिन खुश हो कर दे रही हैं । "
लेकिन रिंकी ने कोई प्रतिक्रिया नहीं की । जैसे उसने कुछ सुना ही ना हो । फिर बड़ी मालकिन ने भूनभूनाते हुए गुड़िया उसके हाथ में रख दी, और एक तरफ चल दी । रिंकी फिर भी वहीं खड़ी रही ।
मां ने प्यार से उसके सिर पर हाथ फेरा बोली- ऐसे क्या देख रही है मेरी बच्ची? बड़ी मालकिन किसी को कुछ नहीं देती । पहली बार तुझे खुश होकर बक्शीश दिया है ले ले । पर रिंकी के मन में कुछ और ही चल रहा था कि यह कैसी बक्शीश है, जिसे पाकर ना वह खुश है और ना देने वाला । लेकिन उसकी मां खुशी से फूली नहीं समा रही है ।
और रिंकी मन ही मन फूसफूसाई :-
" यह कैसी बक्शीश "
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